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संकट टला नहीं है / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
संकट टला नहीं है
सटोरियों ने दाँव लगाने छोड़ दिए हैं
चौखट के बाहर
अप्रिय घटनाओं का बाजार गर्म है
खिचड़ी नहीं पक रही आज घर में
बंदूक के टोटे
सड़कों पर बिखरे पड़े हैं
धुआँधार बमबारी चल रही है बाहर
समय नहीं है प्यार की बातें करने का
कविता लिखने, आँखे चार करने का
यमदूत थके नहीं हैं
यहीं कहीं घर के बाहर खड़े
प्रतीक्षा कर रहे हैं
किसी चुनाव-परिणाम की !