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संकल्प / तेज राम शर्मा
Kavita Kosh से
संकल्प का जल और दूब
धरती पर छोड़ते हुए
कांपते हैं तुम्हारे हाथ
जंबूद्वीप हो चाहे भारतखणड
ब्लैक बोर्ड पर मास्टर जी
सिखा रहे हैं
जमा और गुणा के सवाल
कविता की कक्षा में
किसी के पास नहीं थी पुस्तक
आत्मा की रंगत
अन्ताक्षरी में सिमट गई थी
‘पृथ्वी त्वया धृता लोका’
घबराई हुई पृथ्वी
छिपने की जगह ढूंढ रही है
भविष्यवाणियों पर बहस
अगले सत्र तक टल गई है
शिक्षाविदों ने गणित की पुस्तक से
भाग के प्रश्नों को हटा दिया है
इस समय में कर्ण
पत्थर पर काई की फिसलन है
अब तक
पुरानी बावड़ी के
अंधेरे कोनों में
चमगादड़ों के शोर के बीच
दब गई होगी
संकल्पों की अनुगूँज।