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संगत / नंदकिशोर आचार्य
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धूप की संगत में
लय रचता अपने सूख
जाने की
हवा की संगत में
झर जाने की अपने
रच जाय लय तो
नन्द हो जाती है मृत्यु भी :
लय हैं मेरी नींद में इस लिए
लय हो पाने के सपने ।
—
17 अप्रैल, 2009