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संगमरमर फलक / राजेन्द्र किशोर पण्डा / दिनेश कुमार माली
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पुरी मन्दिर के प्रांगण में असंख्य संगमरमर फलक -
जिन पर उत्कीर्ण है
नाम, धाम, मुकाम
तारीख़, मास, सन् की
नाना स्मृतिलिपियाँ।
मनुष्य यह कहता हुआ आता है :
वे लोग थे, मैं हूँ।
अब कहाँ है, मथुरा के नन्दलाल दूबे,
कोलकाता के विजन घोषाल,
निआली के नीलमणि मोहन्ती?
हैं कहीं?
उस दिन प्रचण्ड धूप में फ़र्श तप रहा था
अचानक एक फलक पर मेरा पाँव पड़ा
जिस पर लिखा था एक शब्द
न नाम, न पता, न कोई घोषणा
केवल एक शब्द लिखा हुआ था
'शरण'
मुझे अहसास हुआ
मैं तो अमृत सागर का बिन्दु हूँ
जिसमें विलीन हो जाता हूँ।
मूल ओडिया से अनुवाद : दिनेश कुमार माली