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संगिनी / निमिषा सिंघल

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संगिनी, गृह स्वामिनी वह वामांगिनी।
आर्य पग धरे वह साथ हो, सुखद अनुभूति का अहसास हो।
वह स्मिता वह रागिनी वह साध्वी, धर्मचारिणी।
निश्छल हंसी उज्ज्वल छवि सुरम्यता बेमिसाल हो।
शीतल भी हो गरिमामयी, कल-कल ध्वनि-सी निनादनी।
निरन्न उपवास धारिणी, सावित्री-सी आनंद दायिनी।
अतुल्य जो चंचल भी हो, प्राण प्रिय ऐसी सुहासिनी।