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संघर्ष / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
घुटन, बेहद घुटन है !
होंठ.... / हाथ.... / पैर
निष्क्रिय बद्ध
जन - जन क्षुब्ध.... / क्रुद्ध !
प्राण - हर
आतंक - ही - आतंक
है परिव्याप्त
दिशाओं में / हवाओं में !
इस असह वातावरण को
बदलना
ज़रूरी है !
इंसानियत को
बचाने के लिए
हर आदमी का अब सँभलना
ज़रूरी है !
जलन, बेहद जलन है,
तपन, बेहद तपन है !
हर क्षितिज
गहरे धुएँ से है घिरा
आग....
शोले उगलती आग,
लहराती
आकाश छूतीं अग्नि लपटें !
इनको बुझाना
ज़रूरी है !