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संचार नव उल्लास का / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
हर श्वांस सरगम-सी लगे, कोमल भरे अहसास का।
सपने सुहाने साथ अब, संचार नव उल्लास का।
कविता कला में डूब कर, मन को लुभाते हैं सभी,
सौंपे वही संसार को मन, तीर्थ हो विश्वास का।
मन कारवाँ बढ़ता रहे, नव वर्ष का श्रंृगार हो,
आतुर खड़ा हर भाव है, दर्पण सजे विन्यास का।
फिर काव्य सुरसरि हो मनोरम भीग तन मन गा उठे,
बहुमूल्य प्रतिपल देश हित, अर्पण करें हर श्वांस का।
दुर्गम बनाते हैं वही, जो द्वेष का विष बो रहे,
मिटता नहीं वह हार कर, हृद्प्रेम के आभास का।