भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संभलो दर्शको / हेमन्त शेष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संभलो दर्शको
ऊब की मक्खी को
अपनी उम्मीद की पोशाक पर बैठने न दो
सम्भव है नींद खुलने पर इस बार
किसी बदली हुई दुनिया में जागें हम
जागने से बड़ी है इस बार
पोशाक
संभलते दर्शको