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संभावनाएँ / त्रिलोचन

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संभावनाएँ

फहरा रही है

विजय ध्वजाएँ


आए अँधेरी

होंगी न चेरी

रातें लगाएँ

देरी में देरी

धरती से हम भी

सूरज उगाएँ

कलियाँ जगी है

रस में पगी है

धारा सुरभि की

बहाने लगी है

हम भी सुरभि से

बसा दें दिशाएँ

(रचना-काल -8-2-62)