संभावनाएँ / पूनम मनु
नहीं पनपती कोई इच्छा
न ही जन्म लेती है संभावना कोई
मुर्द-सी बेनूर पीली रंगत वाली आँखों में
सपने आने से करते हैं इंकार
टूटे औसारे के सभी सफा कोने
खुले और खाली पड़े होने के बावजूद
नहीं ले पाते खुलकर सांस
औसारे के बीचों–बीच टूटी पड़ी,
मिट्टी की हांडी के टुकड़ों में से-
पाँव टेकन खेलने को कोई नहीं छाँटता तब
अपना मनपसंद पिट्ठू
बान की पुरानी चारपाई का एक टूटा पाया
इस काबिल नहीं हो पाता कि-
बाकी तीनों का साथ दे—
तो बुना जा सके उसपर बैठ
कोई सुनहरा स्वप्न या
इतना भी कि लिखा जा सके कोई ऐसा प्रार्थना–पत्र
जिसे पढ़ सूदखोर लौटा दे उसकी वह ज़मीन
जिस पर बने मॉल के अंदर
सजे मेकडोनाल्ड के ओवन की तपिश से
जल गए हैं उसके नन्हें मुन्नो के निवाले
या फिर गाया जा सके उसको छू ऐसा कोई भजन
जिसे सुन फट जाए धरती का सीना
और समा जाए उसमें वह समूचा परिवार सहित
एक कोने में बने चूल्हे में पड़ी
दो दिन पहले की बासी राख़
आज तक की दी ज़िंदगी की,
कसम खा कर पूछती है
" मैं किसी से न कहूँगी सच,
पर मुझे बता दो कि-
कमजोर, भूखे पेटों में, आत्महत्या के सिवा दूसरी
संभावनाएँ कैसे जन्म लेती हैं! "