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संयुक्ता / ‘हरिऔध’

 
आर्यवंश की विमल कीर्ति की धवजा उड़ाती।
क्षत्रिय-कुल-ललना-प्रताप-पौरुष दिखलाती।
कायर उर में वीर भाव का बीज उगाती।
निबल नसों में नवल रुधिार की धार बहाती।
विपुल वाहिनी को लिये अतुल वीरता में भरी।
सबल बाजि पर जा रही है संयुक्ता सुन्दरी।1।

प्रबल नवल-उत्साह-अंक में शक्ति बसी है?
या साहस की गोद मधय धीरता लसी है?
परम ओज के संग विलसती तत्परता है।
या पौरुष के सहित राजती पीवरता है।
चपल तुरग की पीठ पर चाव-चढ़ी चित-मोहती।
या दिलीश उत्संग में है संयुक्ता सोहती।2।