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संसार में आउर-आउर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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संसार में आउर-आउर लोग
जे हमरा के प्यार करेला
से सभे हमरा के कठोर बंधन में
बान्ह के राखे चाहेला।
तहार प्रेम सब प्रेम से महान बा
एहीं से ओकर तौरो-तरीक नय ब।
तूं अपना प्रेमी के बान्ह के ना राखऽ
ओके मुक्त छोड़ के खुद लुका जालऽ
आउर लोग हमरा के अकेले ना छोड़े
जे में हम ओह लोगन के भूल ना जाईं
एगो तूं बाड़ऽ जे दिन-पर-दिन बीतल जत
बाकिर तहार दरसन दुरलभ बा।
तहरा के हम पुकारीं भा ना पुकारीं
जहाँ मन में आवे तहाँ डोलत फिरीं
बाकिर तहार प्रेम बा जे हरदम
हमरा प्रेम के पेंड़ा हेरत रहेला।