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संसार : नियति / गिरिराज शरण अग्रवाल

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मधुस्नेह हो गया स्वप्नमय
भाव हृदय के सूने घट में
हो विलीन सब
दुख के राग सुनाते गाते
पीड़ा के अभिशाप व्याल-से
काल-भाल को डसते जाते
और आह के अथाह स्रोत
इस अंतस्तल में
श्वासों के बड़वानल के मिस
दर्दीले तूफ़ान मचलते ।
समय बदलता रहा
प्रगति भी सदा रही है,
रहे बदलते मीत, बंधु
सारे प्रेमीजन
पर यह वसुधा वही रही है ।
इसमें कड़वे औ' मीठे
सब फल उगते हैं ।
मीठा-मीठा स्वाद
सदा ही कुछ पाते हैं
कुछ को केवल
कड़वे फल ही मिल पाते हैं ।