भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संस्कारां रो पाळसियो / नरेन्द्र व्यास
Kavita Kosh से
म्हारै दादा जी री
पुराणी हेली
हेली रै डागळै माथै
आभै खानी मुंडो करयां
पड्यो माटी रौ पाळसियो
निरखै है हाल ताई
उण पंछीडां नै
नी आवै अबै बै
जका कदै ई आंवता सुस्तावरण
आप री तिरस् बुझावण।
म्हैं देखूं
आज बौ खुद
नीं जाणै कद सूं
तिरसो है
दादाजी री
तिरसी आंख्यां भांत
निरखती रैवै जिकी
आभै सूं स्यात
संस्कारां रै
उण सुक्कै पड्ये
जूने पाळसिये नै।