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सईंया घरवा के छोड़ बहरवा / सुभाष चंद "रसिया"

सैया घरवा के छोड़ बहरवा रहे।
कैसे जिनगी बिताई तन्हाई में॥

वन में बोले कोयलिया जिया जरे।
तन में लागेला आग पुरुवाई में॥

बीते दिनवा ना रतिया सुरतिया भूले।
रहिया देखिला हम बाबा अंगनाई में॥

सैया जन्मी सनेहिया भुला गइल।
निक लागे ना हमके अमराई में॥

पपीहा निहारे सेवती के पानी।
बरसे ना बदरा सखी पुरुवाई में॥