सक्षम / ऋचा दीपक कर्पे
काँटों भरी थी हर डगर
कठिनाइयाँ थी मार्ग पर
हारी नहीं थी मैं मगर
है तय किया हँसकर सफर
आगे को बस बढती हूँ मैं
अक्षम नहीं सक्षम हूँ मैं!
पैरों में थी मेरे बेडियाँ
ऊँचा शिखर और सीढियाँ
आशा के पर से उड चली
आखिर मुझे मंजिल मिली
आकाश में उडती हूँ मैं...
अक्षम नहीं सक्षम हूँ मैं!
माना मेरी धरती अलग
है भिन्न कुछ मेरा फलक
धीमी मेरी रफ्तार है
मंजिल मेरी उस पार है
इक पल नहीं थकती हूँ मैं
अक्षम नहीं सक्षम हूँ मैं
परिवार ने मुझे बल दिया
कठिनाई में सम्बल दिया
ईश्वर मेरा मेरे साथ है
किस्मत मेरी मेरे हाथ है
उत्साह से परिपूर्ण मैं
अक्षम नहीं सक्षम हूँ मैं।
एक ज्ञान का सागर मिला
मुझे वाणि का है वर मिला
साहित्य की सरिता बही
मेरे मन ने भी कविता कही
ऋग्वेद की ऋचा हूँ मैं
अक्षम नहीं सक्षम हूँ मैं
अक्षम नहीं सक्षम हूँ मैं।