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सखी री फागुन आया है / रवीन्द्र प्रभात
Kavita Kosh से
सरस नवनीत लाया है,
सखी री फागुन आया है!!
बरगद ठूँठ भयो बासंती, चँहु ओर हरियाली,
चंपा, टेसू, अमलतास के भी चेहरे पे लाली,
पीली सरसों के नीचे मनुहारी छाया है!
सखी री, फागुन आया है!!
तन पे, मन पे साँकल देकर द्वार खड़ी फगुनाहट,
मन का पाहुन सोया था फ़िर किसने दी है आहट,
पनघट पे प्यासी राधा के सम्मुख माया है!
सखी री, फागुन आया है!!
हाथ कलश लेकर के चन्द्रमा देखे राह तुम्हारी,
सूरज डूबा, हुई हवा से पाँव निशा के भारी,
बूँद-बूँद कलसी में भरके रस छलकाया है!
सखी री, फागुन आया है!!
ठीक नहीं ऐसे मौसम में मैं तरसूँ-तू तरसे,
तोड़ के सारे लाज के बन्धन आजा बाहर घर से,
क्यों न पिचकारी से मोरी रंग डलवाया है!
सखी री, फागुन आया है!!