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सखी सहेली सारी तेरा / निहालचंद

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सखी सहेली सारी तेरा रूप देख शरमाई।
इस दुनिया मैं इतनी सुथरी कोन्या और लुगाई॥टेक॥
के विष्णु की महामाया लक्ष्मी, के ब्रह्मा की ब्रह्माणी।
के शिव की प्यारी पार्वती, के इन्द्र की इन्द्राणी।
के अग्निदेव की स्वाहा पत्नी, के वरूणदेव की राणी ।
के नौ दुर्गा उनमैं तै कोए सी, तू करती सैर भवानी ।
के किसी ऋषि का श्राप अप्सरा, तू मृत लोक मैं आई।1।
किसी मनुष्य की नारी हो तै, कहूँ तनै समझाकै ।
मेरे दिल मैं डभका होग्या, पछताऊँ नौकर लाकै ।
जिस दिन राजा रंग महल मैं, तनै देखले आकै ।
लगै तमाचा तेरे रूप का, पड़ै तिवाळा ख़ाकै ।
फेर कामरति का जोड़ा मिलज्या, होण लगै मनचाही।2।
तू मिश्री मैं गुड़ की डळी, सब गुण ओगण टोह्या जा।
कदे आच्छी करते भूण्डी होज्या, रस मैं विष बोया जा।
फेर महल मैं हुक्म चलै तेरा, मेरा आदर खोया जा।
हो अपणा मरण जगत की हाँसी, कोन्या दुख रोया जा।
फेर तू बणज्या महाराणी, मैं जाँ ठोकर तै ठुकराई।3।
तेरा नाक सुआ-सा, मुँह बटवा-सा, सुर्ख लबों पै लाली ।
मिजगाँ के तीर अबरू कमान, दो ज़ुल्फ़ नाग-सी काली ।
तेरी तिरछी नज़र प्रेम की चितवन, वार नहीं जा खाली ।
कहैं निहालचंद उस बेमाता नै, तू घड़ी बैठ कै ठाल्ली ।
सुण कोयल बैनी मृगनैनी, तेरै घली कुदरती स्याही।4।