भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सगुण-निरगुण/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
में कोनी बजाऊं
मने बजावे है
ओ सितार,
बंध्योडी है ईं री झंणकार स्यूं
म्हारी चेतना
जियां दिये री बाती स्यूं लो
छु'र ईं रा तार
पकड़ ले गत आंधी आंगल्याँ
सुण'र ईं री धुन
सगुण बण ज्यावे निर्गुण !