Last modified on 20 अगस्त 2017, at 11:37

सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आई / त्रिलोचन

सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आई,
झूठ क्या कहूँ। पूरे दिन मशीन पर खटना,
बासे पर आकर पड़ जाना और कमाई
का हिसाब जोड़ना, बराबर चित्त उचटना।
 
इस उस पर मन दौड़ाना। फिर उठकर रोटी
करना । कभी नमक से कभी साग से खाना ।
आरर डाल नौकरी है। यह बिलकुल खोटी
है। इसका कुछ ठीक नहीं है आना जाना।

आए दिन की बात है। वहाँ टोटा टोटा
छोड़ और क्या था। किस दिन क्या बेचा-किना।
कमी अपार कमी का ही था अपना कोटा,
नित्य कुआँ खोदना तब कहीं पानी पीना।

धीरज धरो, आज कल करते तब आऊँगा ,
जब देखूँगा अपने पुर कुछ कर पाऊँगा।