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सचमुच बहुत देर तक सोए / मुकुट बिहारी सरोज
Kavita Kosh से
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
इधर यहाँ से उधर वहाँ तक
धूप चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक
लोगों ने सींची फुलवारी
तुमने अब तक बीज न बोए ।
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
दुनिया जगा-जगा कर हारी,
ऐसी कैसी नींद तुम्हारी ?
लोगों की भर चुकी उड़ानें
तुमने सब संकल्प डुबोए ।
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
जिनको कल की फ़िक्र नहीं है
उनका आगे ज़िक्र नहीं है,
लोगों के इतिहास बन गए
तुमने सब सम्बोधन खोए ।
सचमुच बहुत देर तक सोए ।
’किनारे के पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से