भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच्चाइयाँ / विजय किशोर मानव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी अपनी अलमारी में
ऊपर के खाने में
पीछे कोने में रखा-
कागज का एक पुराना अधफटा टुकड़ा
किसी और की लिखावट का,
किताबों के बीच
न दिखे, इस जतन से रखी डायरी
और उसमें
पंखुरी-पंखुरी हो गया फूल,
पोटली में
पिता का लिया
कर्ज चुकाने के बाद
हासिल हुए-इंदुलतलब रुक्के
क्यों डराते हैं मुझे?
पत्नी और बच्चों के
अलमारी छूने पर
क्यों खीजने लगता हूं मैं?

मुझे पता ही नहीं लगा
कब डर बन, गईं
मेरी निजी सच्चाइयां