सच्चाई को देख आज ,हंसी बड़ी आती है 
अपनी फूटी किस्मत पर, कोने में बैठी रोती है
रानियों सा सुख था भोगा, उसने किसी ज़माने में 
कलियुग में पल भी न लगा, अपना नाम गंवाने  में 
झूठ सच की चादर ओढे, आज शान से है बैठा 
उसके जैसा कोई कहाँ, सदा चले गर्व से ऐठा
अच्छाई को कुचल रहा, प्रेम प्यार का घोंट गला
दंभ की छाया में जन्मा, घ्रणा के आँचल  में पला 
सच जानो डर-डर कर जीना, सच को सच में न भाया 
समय नहीं एक सा रहता, वेदों ने था सिखलाया 
मान यही सच जा बैठा, घूंट ज़हर का पिए हुए 
फल इंतज़ार का मीठा, होंठ मानो था सीए हुए 
आखिर कब तक झूठी माया अंधकार फैलाएगी 
सच्चाई की जगमग ज्योति, जग पर एक दिन छाएगी