भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच्चे घर‌ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझको दे दो प्यारी अम्मा,
दो दो के दो सिक्के।
उन सिक्कों से बनवाऊँगा,
दो सुंदर घर पक्के।

दो सुंदर घर पक्के अम्मा,
दो सुंदर घर पक्के।
इतने पक्के घुस ना पाएं
उनमें चोर उच्चके।

उनमें चोर उच्चके अम्मा,
उनमें चोर उच्चके।
अगर घुसे तो रह जाएँगे,
वे घर में ही फंस के।

अम्मा बोली दो रुपए में,
ना बनते घर पक्के।
ढेर ढेर रुपए लगते हैं,
तब घर बनते अच्छे।

कड़े परिश्रम के बल्ले से,
मारो चौके छक्के।
पैसा रहे पास में तो ही,
घर बनते हैं सच्चे।