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सच्चे नफ़्श कुश (हीजड़े) / नज़ीर अकबराबादी

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बेटा हुआ किसी के जो सुन पावें हीजड़े।
सुनते ही उसके घर में फिर आजावें हीजड़े॥
नाचें बजाके तालियां और गावें हीजड़े।
ले लेके बेल भाव भी बतलावें हीजड़े॥
उसके बड़े नसीब जहां जावें हीजड़े॥

ज़ाहिर में गरचे पेट के अपने मजूरे हैं।
पर दिल में अपने फ़क्र के गहने को घूरे हैं॥
.......न इनके पास न दोनों ..... हैं।
ख़ासे लंगोट बंद खु़दा के यह पूरे हैं॥
बेटा दुआ से बाँझ के जनवावें हीजड़े॥

पूरे फ़कीर नफ़्स कुशी<ref>इन्द्रिय-दमन</ref> का करें है शग़ल।
इनमें भी बाजे़ रखते हैं कितने खु़दा के वस्ल॥
जो नफ़्स मारते हैं वह करते हैं उनकी नक़्ल।
सच पूछिये तो नफ़्स उन्होंने किया है कत्ल॥
क्या मर्दमी कि मर्द हैं कहलावें हीजड़े॥

यूं देखने में गरचे यह हल्के से माल हैं।
नाचे हैं नेग जोग का करते सवाल हैं॥
हमको तो पर उन्हों से अदब के ख़याल हैं।
अक्सर उन्हों के भेस में साहिब कमाल हैं॥
जो कुछ मुराद मांगो यह बर लावें हीजड़े॥

बातें भी उनकी साफ़ हैं मिलना भी साफ़ है।
सीना भी उनका आइना मुखड़ा भी साफ है॥
ज़ाहिर भी उनका साफ़ है जेवडा भी साफ़ है।
आगा भी उनका साफ़ है पीछा भी साफ़ है॥
जब ऐसे जिन्दा दिल हों तो कहलावें हीजड़े॥

चलते हैं अपने हाल में क्या क्या मटकती चाल।
कुछ ऊंची ऊंची चोलियां कुछ लम्बे लम्बे बाल॥
आता है उनको देख मुजर्रद<ref>एकाकी, अविवाहित</ref> के दिल को हाल।
...... को लात मारके एक दम में दे निकाल॥
वह मरदुआ कि जिसके तई भावें हीजड़े॥

यह जान छल्ले अब जो कहाते हैं खु़श सफ़ीर<ref>शुभ-संदेशक</ref>।
है दिल हमारा उनकी मुहब्बत में अब असीर<ref>कै़द</ref>॥
मुद्दत से हो रहा है इरादा यह दिल पज़ीर।
अल्लाह हमें भी देवे जो बेटा तो ऐ ”नज़ीर“॥
हम भी बुला के खू़ब से नचवावें हीजड़े॥

शब्दार्थ
<references/>