भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच कहता हूँ मैं दक्ष नहीं / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
सच कहता हूँ मैं दक्ष नहीं
भावुकता में सीखा चलना
अपनी ही प्यास न बुझ पायी
बरसे तो इतना कम बरसे
तुम ऐसे बीच राह छुटे
घट छूटे ज्यूं प्यासे कर से
यदि संभव हो छलने वाले
सीमा के भीतर ही छलना
जो चाहे जैसे ले जाये
कब होंगे इतने हलके हम
भारीपन मन ही मन सहके
देखो कब तकयूं छलकें हम
कुछ ऐसा जीवन हो अपना
सूने मठ में, दीपक जलना