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सच कह उनके लिए डर हो गए हम / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सच कह उनके लिए डर हो गए हम।
उनकी नज़रों में ज़हर हो गए हम।
जलसे में जब चली बात राशन की,
वहां लेकर भूख मुखर हो गए हम।
हरे चश्मे बंटते देखे जब वहां,
शीशा तोड़ते पत्थर हो गए हम!
हवा तक जब कैद होने लगी वहां,
ले सबको साथ बाहर हो गए हम।
कब तक नहीं टूटेंगे ये किनारे,
साथ जुड़ उछलती लहर हो गए हम!