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सच का स्वार्थ / विश्राम राठोड़
Kavita Kosh से
हमें हमारी तस्वीरों में
ऐसी कहानियाँ छा ने
लगी है
छा जाता है कोहरा
मिटाने के लिए
धूप आने लगी है
धूं जैसा जलता
अगर पडो़सी का घर
तो चुप
अपना ही घर जलता
तो राख
नज़र आने लगी