सच की ज़ुबान / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
सच की नहीं होती ज़ुबान
वह काट ली जाती है
बहुत पहले-
अहसास होते ही
कि व्यक्ति
किसी न कुसी दिन
सच बोलेगा
किसी बड़े आदमी का राज़ खोलेगा ।
शुभ कर्म का
नहीं होता कोई पथ
जो इस पथ को पहचानते हैं
वे इस पर चलने वाले
हर कदम को रोक देना
शुभ मानते हैं ;
क्योंकि
जो शुभ पथ पर चलेगा
वह अशुभ की पगडण्डियाँ
बन्द करेगा
केवल भगवान से डरेगा।
बच नहीं सकते वे हाथ
जो इमारत बनाते हैं
किसी के भविष्य की,
जो गढ़ते हैं ऐसा आकार-
जिसकी छवि
आँखों को बाँध ले
जो बोते हैं धरती पर
ऐसे बीज,
जिनसे पीढ़ियाँ फूलें–फलें ।
जो देते हैं दुलार,
जो बाँटते हैं प्यार,
जो उठते हैं केवल
आशीर्वाद के लिए
जो बढ़ते हैं किसी की रक्षा में
वे काट लिए जाते हैं ;
क्योंकि ऐसा न करने पर
कुकर्म के अनगिन भवन
ढह जाएँगे,
टूट जाएँगी कई तिलिस्मी मूर्तियाँ ।
तृप्त पीढ़ी रिरियाएगी नहीं
दुलार, प्यार और आशीर्वाद
की छाया में पले लोग
उनकी खरीद भीड़ नहीं बन सकेंगे ।