भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच की दौलत जो तुम कमाओगे / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच की दौलत जो तुम कमाओगे
दिल के अंदर सुकून पाओगे

क्या निभाओगे ग़म के मारों से
तुम फ़रेबी हो भाग जाओगे

मैं हूँ पत्थर न मुझसे टकराना
तुम बहर-तौर टूट जाओगे

रब ने बख़्शा मुझे दिल-ए-आगाह
कौन-सा राज़ तुम छुपाओगे

मैं दुखों का पहाड़ काटूँगी
क्या मेरा साथ तुम निभाओगे

सच ही कहते हैं, दिलरुबा हो तुम
और कितनों का दिल उड़ाओगे

खून मांगे है दोस्ती ‘देवी’
क्या उसे खूने-दिल पिलाओगे