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सच के आस पास / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
धूप के बर्तन में से उठाकर
उसने दिए कुछ छांह के टुकड़े
और बोला उससे-
"यह लो उपहार मेरी ओर से
अब तुम्हें नहीं लगेगी गर्मी
नहीं आएगा पसीना
बहो हवा में, छू लो आसमान
जिसका सूरज
दबा है मेरी मुट्ठी में"
उसने लपेट लिया है खुद को
उन टुकड़ों में
और परोस रहा है यह झूठ
सच के आसपास