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सच हुए सपने तेरे, झूम ले ओ मन मेरे / शैलेन्द्र

सच हुए सपने तेरे झूम ले ओ मन मेरे
 
बेकल मन का धीरज लेकर मेरे साजन आये
जैसे कोइ सुबह का भूला साँझ को घर आ जाये
प्रीत ने रँग बिखेरे झूम ले ओ मन मेरे

मन की पायल छम छम बोले हर एक साँस तराना
धीरे धीरे सीख लिया अखियों ने मुसकाना
हो गये दूर अंधेरे झूम ले ओ मन मेरे

जिस उलझन ने दिल उलझाके सारी रात जगाया
बनी है वो आज प्रीत की माला मन का मीत मिलाया
जगमग साँझ सवेरे झूम ले ओ मन मेरे