भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच हुए सपने तेरे, झूम ले ओ मन मेरे / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच हुए सपने तेरे झूम ले ओ मन मेरे
 
बेकल मन का धीरज लेकर मेरे साजन आये
जैसे कोइ सुबह का भूला साँझ को घर आ जाये
प्रीत ने रँग बिखेरे झूम ले ओ मन मेरे

मन की पायल छम छम बोले हर एक साँस तराना
धीरे धीरे सीख लिया अखियों ने मुसकाना
हो गये दूर अंधेरे झूम ले ओ मन मेरे

जिस उलझन ने दिल उलझाके सारी रात जगाया
बनी है वो आज प्रीत की माला मन का मीत मिलाया
जगमग साँझ सवेरे झूम ले ओ मन मेरे