सच है प्यार के बाद / विवेक तिवारी
सच है
प्यार के बाद
बदलते मौसम की करवटों में
चाहे जितना भी वक्त गुजर जाए
पर मन की भीतरी परतों में
अहसास,उमंगों,स्मृतियों
और सपनों का संसार नहीं बदलता
और शायद यही एक वजह है
हर एक दर्द
बेचैनी
अन्तर्व्यथाओं
अधूरेपन की
पर न जाने कब
ये सब जान पाओगी तुम
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और न जाने कब जान पाओगी
कितना चाहा है तुम्हें
कितनी मन्नते मांगी हैं
और ये दिल आज भी
भरा-पड़ा है भावनाओं से
और जीवन के हर-एक मोड़ पर
तुम्हारी ही सबसे ज्यादा जरुरत है
पर जानता हूँ
तुम कभी मिलोगी नहीं
पर फिर भी
इस जीवन की आपाधापी में
एक विशुद्ध प्रेम कि तलाश
और प्रतिबन्धों-रूढ़ियों-मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाते
हर मौसम में हर लम्हा
हफ्तों
महीनों
सालों
तुम्हें तो पूरी उम्र जीना है ।