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सच है / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी शुरू हुई
कि अन्त आ गया !
अभी-अभी हुई सुबह
कि अंधकार छा गया !
आसमान में
सतत बिखर-बिखर
किरण-किरण
विलीन हो गयी
कि दूर-दूर तक
प्रखर प्रकाश की
अजस्र धार खो गयी ?
यहाँ-वहाँ सभी जगह
अपार शोर था,
व्योम के हरेक छोर तक
लाल-लाल भोर था,
राग था,
गीत था,
प्यार था,
मीत था,
विलुप्त सब !
रुको ज़रा
प्रकाश आयगा,
प्रकाश का प्रवाह आयगा !
नया विहान छायगा !