सच / कल्पना सिंह-चिटनिस
मां तुम मत ढूंढो
अपनी संतानों के चेहरे पर
सुबह के सूरज का सत्व अभी,
पिता तुम मत ढूंढो
उनकी आँखों में
कोई अन्यथा स्वप्न।
तुम दो उन्हें अपना वात्सल्य,
पर इस तरह नहीं कि वे
तुम्हें कभी माफ़ नहीं कर पाएं
तुम मत कहो उनसे
कि सात रंगों की धनुष पर टंगा आसमान
आज भी वहीं है,
मत कहो कि तुम्हारे मन के कोने में
अभ भी बाकी है
कहीं कोई जमीन हरी,
तुम कहो उनसे बस वही,
जो सच है,
और अगले ही क्षण
तुम्हारे शिशु ,
तुम्हारी धरती की अंगार पपड़ियों पर
दौड़ते दिखाई पड़ेंगे।
तुम कहो उनसे वह
जो नहीं कह पाए आज तक
स्वयं से भी
तुम मत करो बंद
अपनी आँखें इसलिए कि
तुम्हे आँखें,
भूख से दम तोड़ते
उस सोमालियाई बच्चे के पिता की
रेतीली आंखों से मिलती हैं,
कि तुम्हारे भीतर का सच
किसी युद्ध के बाद लहूलुहान,
वीरान पड़े शहर की सूनी, मातमी गलियों की तरह,
कि तुम्हारे भीतर
कहीं कोई शुभ नहीं,
समृद्धि नहीं,
तुम सौंपो उन्हें, बस अपना सत्य,
चाहे संताप, आंधियां और हिचकियाँ ही सही,
पर दो वही जो सच है।
कुछ दे सको तो दो
यह आंदोलित समुद्र
और विशाल मरू सा अपना विश्वास,
कुछ दे सको तो दो यह आशीष
कि तुम्हारी संताने तनी रहें
पतवारों की तरह,
कि समुन्दर की लहरों में भी घुलें
सात रंगो वाले धनुष के
सात रंग।