भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
जो सच था, वो कभी दिखाई नहीं दिया
वह इतना कड़वा था
किसी ने उसे देखने की
जरूरत भी नहीं समझी
सच छुपा रहा
आदमी बचा रहा
लेकिन सच तो सामने ही था
आदमी की आँखें बन्द थीं।