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सड़कों, चौराहों पर मौत और लाशें-12 / पाब्लो नेरूदा

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हज़ारों साल तक
इस सड़क पर बिछे पत्थरों से
तुम्हारे क़दमों की आवाज़
और आहटें आती रहेंगी
पत्थरों पर पड़े तुम्हारे ख़ून के दाग़
अब किसी तरह मिटाए नहीं जा सकेंगे
हज़ारों कंठों की अजस्र ध्वनि
इस सहमे हुए मौन को तोड़ देगी
तुम्हारी मौत को भूला नहीं जा सकेगा कभी भी
घंटे की गूँजती हुई आवाज़
उसकी याद दिलाती रहेगी
बरसात में दीवारों को नोनी पकड़ लेगी
नोनी लगी टूटी-फूटी दीवारों के
काँप उठने के बावजूद
शहीदो, तुम्हारे नामों की ज्वाला
कोई बुझा नहीं पाएगा
अत्याचारों के हज़ारों बेजान हाथ
जीवन्त आशाओं का गला नहीं दबा सकते
वह दिन आ रहा है
हम सारी दुनिया के लोग एकजुट हैं
हम अनेक लोग
आगे बढ़ते जा रहे हैं
बहुत भारी लड़ाई लड़ के
फ़ैसले का वह एक दिन छीन लिया गया है
और तुम
ओ मेरे वंचित भाइयो!
ख़ामोशी से निकलकर तुम्हारी आवाज़ उठेगी
आज़ादी की असंख्य आवाज़ों से मिलने
जब मनुष्य की आशाएँ और आकांक्षाएँ
दिग्विजयी विद्युत-छटाओं से मिलने
निकल पड़ी हैं

अंग्रेज़ी से अनुवाद : राम कृष्ण पाण्डेय