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सड़क के किनारे गुलाब / अज्ञेय
Kavita Kosh से
बेमंज़िल सड़क के किनारे
एकाएक गुलाब की झाड़ी।
व्याख्या नहीं, सफाई नहीं-निपट गुलाब।
बेमंजिल शनिवारी सैरगाड़ी में मैं।
कोई अर्थ नहीं, सम्बन्ध नहीं-निपट मैं।
कितनी निर्व्याज, अजटिल
होती हैं स्थितियाँ जिन में
प्यार जन्म लेता है!
हाइडेलबर्ग, मई, 1976