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सड़क पर एक लम्बा आदमी / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
आज अचानक दीख गया
सड़क पर एक लम्बा आदमी
लोग अपनी-अपनी दुकानों से
उचक-उचक कर घूर रहे थे उसे
बच्चे नाच रहे थे तालियाँ बजाकर
हवलदार फुसफुसा रहा था-
'हुज़ूर, हवालात के दरवाज़े से भी
ऊँचा है यह आदमी'
मसखरे हिनहिना रहे थे
जहाँपनाह, आप की कुर्सी से भी
बड़ा है यह आदमी
चौराहे का सिपाही आँखें फाड़े देख रहा था
बाप रे, सड़क पर इतना लम्बा आदमी !
सीधा तना चल रहा था वह
राजपथ पर दृढ़
विनम्र और बेपरवाह
शहर में आग की तरह फैल गई थी
यह ख़बर
निकल पड़े थे अपने-अपने घरों से
बौने लोग
चौकन्ने हो गए थे अख़बार
सेना कर दी गई थी सतर्क
मंत्रिपरिषद में चल रहा था विचार
एक बुढ़िया
अपने पोते-पोतियों को जुटाकर
दिखा रही थी
कि सतयुग में होते थे
ऐसे ही लम्बे आदमी ।