सड़क / रामदरश मिश्र
सड़क ने कहा-
‘‘चलोगे ?’’
‘‘कहाँ ?’’
‘‘दायरे से बाहर जहाँ देश है।’’
और मैं खुश होकर उसके साथ हो लिया।
कितना अच्छा लगा था दायरे से बाहर निकलना
वह वसंत का दिन था
और सड़क मुझे लिए जा रही थी।
पहली बार का असीम यात्रा-कौतूहल मेरी आँखों में था
और मैं पुलकित होकर देख रहा था-
सड़क के आसपास
ऊष्मित गंध से लदे खेतों का विस्तार
बौरों से लदी अमराइयाँ
चहचहाते पक्षी
खेलते बच्चों से छोटे-छोटे नाले
माँ की ममता की तरह बहतीं निथरी नदियाँ
तट से रेत लेकर बिखेरतीं छोटी बहन की तरह
छोटी-छोटी हवाएँ....
छोटे-छोटे बाजारों का आत्मीय कोलाहल
खेतों में से ताकतीं
खुरदरे प्यार से भरी परिवार-सी आँखें
जिंदगी से लदी बैल गाड़ियाँ
टूटे-फूटे घर
उनमें से फूटते प्यार और मेहनत के गीत
कि मेरे भीतर मेरा गाँव ही
फैलता और बड़ा होता जा रहा है।
मैं इस सड़क को कितना प्यार करने लगा था
यह सड़क नहीं, मेरा देश है।
पता नहीं, कब तक चलता रहा
पता नहीं कितने तरह की मिट्टी की गंध
मेरी साँसों में समाती रही
रंग मेरी आँखों में उतरते रहे
स्पर्श मेरे प्राणों में धुलते रहे
और एकाएक एक दिन
इसने लाकर मुझे
एक जगमगाते कोलाहल के किनारे खड़ा कर दिया।
और मैं भौंचक-सा देखने लगा-
कहाँ आ गया हूँ मैं ?
उसने कहा-
‘‘आओ आगे बढ़ो-यही तुम्हारा देश है।’’
मैं घबराया-सा आगे बढ़ा
लेकिन मेरी नजरें आकाश में टँगी रहीं
ऊँची-ऊँची इमारतें इमारतें..इमारतें
पत्थरों के इतने रंग
इतने आकार
इतना गौरव
और मशीनों पर भागते चिकने-चुपड़े लोग
किसीको किसीकी सुनने की फुर्सत नहीं
मैंने अपने नंगे धूल-धूसरित पैर देखे
काँख में दबी फटी गंदी पोटली देखी
अपना गाढ़े का कुरता देखा
और लगातार भागते एक अलग किसिम के लोगों को
देखने लगा
कहाँ हैं वे लोग
जिन्हें अब तक देखता आया था
यदि यह देश है, तो वह क्या था ?
‘‘मुझे कहाँ ले आयी ओ सड़क !’’
मैं जोर से चिल्लाया
लेकिन वहाँ सड़क थी कहाँ ?
वह तो मुझे छोड़कर गली-गली भागने लगी थी।
और देखा-
देहात से आने वाली वैसी ही अनेक सड़कें
गली-गली भाग रही हैं।
कहीं वे आपस में मिल जाती हैं
कहीं वे एक-दूसरे से टकराती हुई निकल जाती हैं।
इधर भी सड़क, उधर भी सड़क
दायें भी सड़क, बायें भी सड़क
‘‘ओ सड़क !’’
मैं चिल्लाता हुआ दौड़ने लगा
और वह छिप-छिप कर भागती रही
और देखा कि
वह अंत में जाकर एक बहुत बड़ी इमारत
में समा गई।
मैं अपनी पोटली गोद में लिये हुए
उस इमारत के विशाल आंतककारी दरवाजे से कुछ दूर
थक कर बैठ गया
और बैठा हूँ इस इंतजार में
कि शायद सड़क फिर बाहर निकले।