सतवाणी (16) / कन्हैया लाल सेठिया
151.
खिण खिण में घट बढ़ हुवै
बदलै भाव विचार,
कीड़ी सी खिण स्यूं बंध्यो
भव-गज बली अपार,
152.
दूहो बड़ रै बीज ज्यूं
राई रै अपार,
बोवै अंतर दीठ में
उग पूगै गिगनार,
153.
व्याळ सहसफण बापड़ो
नारायण री सेज,
काळ डसै जिण में हुवै
रस इनर्यां रा बेज,
154.
बीज अदेवळ खा सकै
उग्यां जिनावर लार,
मन स्यूं कर सा कळपना
मत पुरषारथ हार,
155.
मसि गारो भाठा सबद
कागद धरती मान,
उठा करम-करणी चिण्यो
कविता रो अस्थान,
156.
बीज एक है पण उग्यां
ज्यासी पड़ फंटवाड़,
आ चिंता कर बीज रो
मत तू भविस बिगाड़,
157.
घाव दियो बैरी करै
पाछो बगत भराव,
कवै बगत नै निरदई
नुगरो मिनख सभाव,
158.
पड़यो कुंभ रै गुण गळै
जणां पतीजी भूण,
ग्यान-नीर ज्या कर सकै
तिरपत जीवा-जूण,
159.
बिन्यां बीज निपजै इस्या
केई है फळ फूल,
गरभ वास स्यूं टाळ दै
बां नै अमरित मूळ,
160.
दिन किण नै गोरो करै
किण नै काळी रात ?
धौळा काळा करम है
जका मिनख रै हाथ,