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सतवाणी (17) / कन्हैया लाल सेठिया

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161.
जका अजोग मिनख बै
दै हूणी नै आळ,
निज रै अकरम वासतै
आ ही लाधै ढाल,

162.
जिंयां भिदयां अणु रै हुवै
बारै घोर निनाद,
बिंयां चेतणा भिद जगै
अंतर अनहद नाद,

163.
सोधै सिस्टी मूळ नै
जकी साव निरमूळ,
कोनी लाधै बीज तू
कांदो छोल समूळ !

164.
करम बंध्या कद जीव रै
तरक उठावै बात,
सहज पडूतर कनक रै
जद स्यूं माटी साथ,

165.
सिस्टी नै बिंबिंत करै
मन रो काच विचार,
निरविचार जे मन हुवै
भासै कद संसार ?

166.
आडी रसना रै करी
दांत होठ री पाळ,
जे उलांघ बारै हुवै
बोली वचन संभाळ,

167.
काढ फूल रै जीव नै
अंतर दीन्यो नाम,
अंतरजामी कद खमै
देखै आठों याम ?

168.
बड़ काजळ री कोटड़ी
रयो जको अणदाग,
नर देही में सांपडत
जलम्यो आप विराग,

169.
सबद अबै कर दै खिमा
जा तू थारी ठौर,
थारै अणहद हेत स्यूं
मै पीड़ीजूं ओर,

170.
उच्छब रै रमझोळ में
टूटयो मुगता हार,
मुगत हू’र नाची मिण्यां
सुवैं राजदरबार,