सतवाणी (25) / कन्हैया लाल सेठिया
241.
घाव एका सा पण फरक
कर दै छाती पीठ,
कुण कायर कुण सूरमा
बणै कचेड़ी दीठ ?
242.
मती कळपना कर करी
तू निरणै आगूंछ,
छूटैली कोनी पछै
जिद नाहर री पूंछ,
243.
म्हे ढोवां पग कद कवै
माथै पर लो भार ?
निज रै करतब नै कणां
मानै पर-उपगार ?
244.
संख, सीपट्यां दै बगा
समद न राखै पास,
मोती कोनी काढ दै
पर बो सोरै सास,
245.
के लेणो के बेचणो
कर लै फड़दी त्यार,
रयो गतागम में पज्यो
ज्यासी उठ बाजार,
246.
लेता सौदो हर जठै
मेल मूंछ रो माळ,
मिलै न कोडी सिर सटै
मिनखां सारू काळ
247.
आ’र पड़यो माथै बजर
तनैं समझ इण जोग,
खरो उतर तू परख में
सम दिस्टी स्यूं भोग,
248.
तुलता मोती ताकड़यां
बोरा हीरा लाळ,
बां रै फोड़ा चून रा
मन रो मौजी काळ,
249.
सिस्टी स्यूं दिस्टी बड़ी
धरती स्यूं गिगनार,
हुवै मिनख रो के बडो
बीं रो बडो विचार
250.
फिरै पीवणां स्यापड़ा
भेख मिनख रो धार,
सूतोड़ां रा सांस पी
भाजै फण फटकार,