सतवाणी (26) / कन्हैया लाल सेठिया
251.
धरम आचरण स्यूं सधै
ओ कोनी परचार,
जड़ां अदीठी रूंख री
करै मांय परसार,
252.
समधरमी है हिम-अगन
सागी मूळ सभाव,
दाझै तरवर आकरो
दोन्यां रो ही ताव,
253.
गगन एक कोनी अलग
हर अणु रो आकास,
दीठै समद अदैत बो
बूंदां रो सहवास,
254.
चांदी स्यूं चन्दो घड़यो
सोनै घड़ियो भाण,
हीरा जड़िया नखत ओ
कुण मोटो धनवान ?
255.
सुई नहीं की काम री
हुवै नहीं जे बेझ,
बडै़ बेझ में गुण करै
बेझां नै अनबेझ,
256.
बंधसी बो ही आंक में
ज्यावै जको गिणीज,
आभो के अंकै गया
आंकड़िया अंकीज ?
257.
मोटी छांटां ओसरयो
काळो बादळ गाज,
पिवती आया चाणचक
हुई हरी मर लाज,
258.
खोटी मत चिन्ती हुवै
चिंतणियै री हाण,
मन रै निरमळ तिरथ नै
क्यां न करै मुसाण ?
259.
सींची नीर सनेव रो
मती करीजे चूक,
इंयां बैर रो आकड़ो
सहजां ज्यासी सूख,
260.
तू मंगती दरपण क्रपण
कोनी दै कीं काढ,
रीझ खीज चावै हुवो
थारा नैण अषाढ,