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सतवाणी (27) / कन्हैया लाल सेठिया

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261.
दरपण नै अरपण हुवै
सज गोरी सिणगार,
पण दरपण री दीठ में
जानै नही विकारर,

262.
रूत जातां भेळा कर्या
करसो कामल बीज,
काती में सामी दिखै
बीं नै आखातीज,

263.
कलम हुई आगै पछै
लारै हुया विचार,
कलम ठमी आखर गया
आतम रै दरबार,

264.
अणभव बो आवै जको
बगत पड़यां पर काम,
कूंची के कोनी मिलै
जद चाहिजै दाम ?

265.
लोक धरम आतम धरम
अै दोन्यूं छत्तीस,
सावळ मारग समझलै
किस्यो बीस उगणीस ?

266.
जलम मरण रै जाळ स्यूं
छूट्यो चावै जीव,
मत तू करी बधोतरी
राखी संजम सींव,

267.
फिरै भीड़ में सोधतो
तू किण नै मोट्यार ?
‘मैं’ गमग्यो सहजां हुयो
थारो बेड़ो पार,

268.
तू चाज्यो पग मांड कर
धरती भरसी साख,
इयां नहीं हामळ भरै
लै उपाव कर लाख,

269.
छोलै डील खराद पर
ठोकै कील लुहार,
दुरगत स्यूं ही गत मिलै
लट्टू सो संसार,

270.
मकड़ी ज्यूं जाळो गुंथै
काढ देह स्यूं तार,
माया ठगणी त्यूं रचै
ओ दिखतो संसार,