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सतवाणी (31) / कन्हैया लाल सेठिया

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301.
भाव भूप री पालकी
 ढोवै सबद कहार,
मिल राजा स्यूं मूढ क्यूं
फिरै कहारां लार ?

302
डाल पान में उळझ मत
जाण्यो चावै भेद,
मूळ पकड ज्यासी समझ
सत है एक अभेद,

303.
मन री बांबी में पड़्या
मिणधर सरप अनेक,
अटकळ स्यूं मिण ले सकै
जिण में सहज विवेक,

304.
तप करसी भेळी हुसी
उरजा आपो आप,
बणै बिन्यां उपजोग बा
दुरवासा रो षाप,

305.
समद मध्यो जद नीसरयो
अमरित सागै जैर,
जद का जूझै सुर असुर
कोनी निवड़यो बैर,

306.
जाबक काळा कोयला
करसी सिलग उजास,
उरजा बणसी वासना
तप री तूळी चास,

307.
नान्ही सी कीड़ी भरै
जद बटको चींथीज,
दाबी मती विचार नै
डस लै लो पीड़ीज,

308.
छोडै कोनी ठौड पण
किंयां उडै आ आंख ?
घणी अचपळी दीठ री
कोनी दीसै पांख,

309.
आसी परणन नै तनैं
मरण फूठरो पीव,
हथलेवै री वगत पण
मती लकोई जीव,

310.
राम नहीं रावण नहीं
अै विचार रा नांव,
एक सुबुध दूजो कुबुध
बाळयो निज रो गांव,