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सताइस / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह

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चैत हे सखी सीया के नेह बूझी, सेन्दूर पोतावै पूरे गात हे
लाले लाले देहिया, उमड़ै पिरितिया, प्रेम हिया न समात हे।

बैसाख हे सखी नैन नीर बहै, झपकी लेॅ मन अकुलाय हे
पलक बीच बसै, प्रभु मुरतिया, निंदिया कहाँ मेॅ समाय हे।

जेठ हे सखी कर जोड़ी अरज करै, दे देॅ सरंग उलका पात हे
हे सेवी त्रिजटा, अग्नि समाधि मेॅ, भसम हमरो गात हे।

अषाढ़ हे सखी अखियाँ लोरावै, बही बही सागर तट जाय हे
यै पार राम प्यारी, बिलखै दरस बिनु, वै पार समाध हुनी पाय हे।

सावन हे सखी सिया बन्दिनी के, हरै नै शोक अशोक हे
आहुर कूटै मन, उचरै नै कागा, सूझै नै लोक परलोक हे।

भादो हे सखी सिया वियोगिनी, बिनती करै कल जोड़ हे
कौनी कसूर प्रभु हमरा बिसारलेॅ, मुक्ति लेॅ तड़पै जिया मोर हे।

आसिन हे सखी सोखैलेॅ सागर, डोर खैंची तैयार हे
देही रूपोॅ मेॅ, समुद्र दर्शन, सेतु बान्ही सेना पार हे।

कातिक हे सखी सीया जुड़ावै, प्रभु पद नेह नॅ समाय हे
देखै नयन भरी, रीझै कथा सुनी, रही-रही आँख लोराय हे।

अगहन हे सखी सीया दुलारी, नेह रस बरसाय हे
राखै नयन बीच, तीनहूँ मैया, हरखित चारो भाय हे।

पूस हे सखी हेमन्त विहँसै, अंक शोभै सिया राम हे
ओस कण नभ, मध मतल मन, कहर ढाहै काम हे।

माघ हे सखी अवध बगिया, राम सिया पग पाय हे
रज कण अमर जहँ, लीला सँवर नर, अंग अनंग समाय हे।

फागुन हे सखी सिय रघुनन्दन, अंग अंग रंग रंगाय हे
भंग सरंग गंग, तंग अनंग जंग, बँध चौबँध फगुनाय हे।