सत्कार / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
मान सतकार करैय श्री भगवनवा हों
फूल सन बोलिया सुनाबैय हो सांवलिया॥
मोहना के मधुर बचन सुनी दुरयोधन।
गद गद होय के तब बोलैय हो सांवलिया॥
अगला ते पांचैय आगे पीछला के मिलैय भागे।
करु न मदद पहले मोर हो सांवलिया॥
तोहरा से बढ़ी के मदद करे बाला रामा।
दोसरो कि जगवा लखावैय हो सांवलिया॥
बेस, बेस, खूबे ठीक बोलैय श्री कृष्ण रामा।
बतिया ते सोलहो आना ठीक हो सावलिया॥
पर अखियां ते परैय आगे अरजुन सुरतिया हो।
बाद तोरा देखों यही ठाम हो सांवलिया॥
दुवो के मदद करवा ‘लछुमन’, धरम हो।
पर छोटका गरीब बड़का धनी हो सांवलिया॥
घट घट बासी उत माधव मुरारी रामा।
दुवो दिल के बात जानी बोलैय हो सांवलिया॥
अस्त्र बिनु रहबौ विकट रन भूमिया हो।
मांगे अरजुन जोन तोरा नीक हो सांवलिया॥
तोहरा छोड़िये हमरा कछुवो ना चाही रामा।
संग साथ में हिलि मिली रहु हो सांवलिया॥
दुरयोधन मने मन बड़ मोद मानैय रामा।
नारायणी सेना पाय के धनी हो सांवलिया॥
जेकरा के जही पर सांची पिरीतिया हो।
‘लछुमन’ सही तौन पावैय हो सांवलिया।
संग करी नारायणी सेना दुरयोधनमा हो।
मोछबा पै हाथ फेरी लौटेय हो सांवलिया॥
शस्त्रहीन देहिया खे किय काज होतौ अरजुन।
काहे लेलु भरम बौरैले हों सांवलिया।
लाभ हानि तनिकोन सोचैय मोर मन रामा।
मन में सबल तोर रूप हो सांवलिया॥
भगत के बस भगवान गिरीधारी रामा।
अरजुन के रथ हांके चलैय हो सांवलिया॥
युध के तैयारी जब दोनों ओर भेलैय रामा।
ब्यास अैलैय तब अंध पास हो सांवलिया॥
यदि तोरो मन होवौ समर देखैके रामा।
दिव्य आंख दियौ लेवीं बोलैय हो सांवलिया॥
नहीं हम चाहो मुनिवर अखियों से देखे रामा।
कुल नाश केर हत्याकांड को सांवलिया॥
पर कानहु से सुने चाहों युध के बितरनमा हों
दया करी खबर भेजै हो हो सांवलिया॥
बेस तोहरा सभे हाल संजय बतैतो रामा।
दिव्य दृष्टि अकरा के देलां हो सांवलिया॥
युध केर ठीक ठीक बतिया जनैतो रामा।
बैठल बैठल सुनी लेवे हो सांवलिया॥
झांझ मृदंग आदि बाजा के तैयारी रामा।
दुन्दभी नगाड़ा कुरुक्षेत्र हो सांवलिया॥
देखु राजा धृतराष्ट्र संजय के बुलाबैय रामा।
पूछैअ कि लड़ाई के विरतान हो सांवलिया॥