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सत्‌‌-चित्‌‌-घन परिपूर्णतम, परम प्रेम-‌आनन्द / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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सत्‌-चित्‌‌-घन परिपूर्णतम, परम प्रेम-‌आनन्द।
विश्वेश्वर वसुदेवसुत, नँदनंदन गोविन्द॥
जयति यशोदातनय हरि, देवकि-सुवन ललाम।
राधा-‌उर-सरसिज-तपन, मधुरत अलि अभिराम॥
वाणी हो गुण-गान-रत, कर्ण श्रवण-गुण-लीन।
मन सुरूप-चिन्तन-निरत, तन सेवा-‌आधीन॥
पूर्ण समर्पित रहें नित, तन-मन-बुद्धि अनन्य।
सहज सफलता प्राप्तकर, हो मम जीवन धन्य॥