साधो आज मेरे सत की परीक्षा है
आज मेरे सत की परीक्षा है ।
बीच में आग जल रही है
उस पर बहुत बड़ा कड़ाह रखा है
कड़ाह में तेल उबल रहा है 
उस तेल में मुझे सब के सामने
हाथ डालना है 
साधो आज मेरे सत की परीक्षा है ।
एक ओर मेरे ससुराल के लोग हैं । 
बड़ी-बड़ी पाग बाँध
ऊँचे चबूतरे पर बैठे हैं
मूँछें तरेरे हुए
भँवें ताने हुए हैं 
नाक ऊँची किए हुए ।
ससुराल का ब्राह्मण
ऊँचे गरजते स्वर में 
बेलाग आरोप सुना कर चुप हो गया है
कि यह जो मेरी छाती पर जड़ाऊ हार है,
बहुत छिपाने पर भी
जिसकी आभा बीच-बीच में लहर लेती है 
जिसकी रोशनी से 
मेरे ससुराल वालों की आँखें झपक जाती हैं
पराये का दिया है 
मेरे कलंक का प्रमाण है ।
मेरे कलंक का प्रमाण है ।
दूसरी ओर मेरे मायके के लोग 
बाबा भैया और सारे नातेदार बैठे हैं 
ज़मीन पर टाट बिछा, 
नंगे सिर गर्दन झुकाये।
उनकी मूँछें नीची हैं 
उन्हें मेरी ओर देखने का 
कलेजा भी नहीं रह गया है।
मेरे सातों भाइयों ने 
बहुत कातर स्वर में 
आरोप का उत्तर दे दिया है
मेरे पुरखों की थाती है 
जो कभी-कभी दिख जाती है
लेकिन ऊँची नाक वालों ने कुछ नहीं सुना
साधो आज मेरे सत की परीक्षा है ।
दस पाँच गाँवों के लोग 
आज मेरी चौपाल में इकट्ठा हो गये हैं 
अब तो सबने आरोप भी सुन लिये।
चारों ओर चुप्पी है
हजार आँखें मेरी ओर एकटक देख रही हैं
कड़ाह के नीचे जलती लकड़ी से
चिनगारी फूटने की आवाज़ सुनाई पड़ रही है ।
आज मेरे सत की परीक्षा है।
कौन-सा साहस करूँ, साधो, 
कौन-सा साहस करूँ ?
हज़ार तर्क दिये जा सकते हैं 
यहाँ से लौट जाने के लिए ।
जिन्होंने आरोप लगाए हैं 
उनके अधिकार को चुनौती दी जा सकती है । 
परीक्षा के इस ढंग को 
अनुचित ठहराया जा सकता है । 
इसकी भरी पूरी मूँछ-मरोड़ ससुराल पर
थूका जा सकता है । 
पूछा जा सकता है
कि सारी बिरादरी में कौन है ऐसा 
जिसके मुँह पर कालिख न हो ।
धरती से फट जाने की प्रार्थना की जा सकती है 
आकाश मार्ग से 
अलोप हो जाया जा सकता है ।
इनमें से कौन-सा साहस करूँ, साधो
मायके और ससुराल और सारी बिरादरी के सामने 
मैं कौन-सा साहस करूँ ?
लेकिन साधो ये सारे साहस
आज ओछे पड़ गए हैं 
मेरा मन इनमें से किसी की गवाही नहीं देता ।
क्योंकि आज मेरे साथ ही साथ 
मेरे मायके, ससुराल और सारी बिरादरी के 
पुरखों की लहर लेती रोशनी के 
सत की परीक्षा है ।
सुनो भाई साधो, सुनो !
और कोई रास्ता नहीं है
मुझे अपने दोनों हाथ
इस खौलते कड़ाह में डालने ही हैं
यदि मेरी छाती पर जड़ाऊ हार की तरह चमकता
आन्दोलित प्रकाश
सचमुच मेरे हृदय का वासी हो 
तो यह खौलता हुआ कड़ाह 
हाथ डालने पर 
गंगाजल की तरह ठण्डा हो जाय ।
ऐसे ही, साधो, ऐसे ही...